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Tuesday, November 8, 2016

जिला प्रशासन पर जमकर बरसे अधिवक्ता..

उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले में लगभग तेरह दिन पूर्व अधिवक्ता विजय प्रताप सिंह को न्यायलय आते समय बदमाशो द्वारा गोली मार दी गई थी। जिसको जिला अस्पताल के डॉक्टरों ने के जी एम यू  रेफर कर दिया था। पर इलाज के दौरान अधिवक्ता विजय प्रताप सिंह ने दम तोड़ दिया था। तेरह दिन बीत जाने के बाद भी सुल्तानपुर पुलिस इस हत्या का कारण तक नहीं पता लगा पाई,बल्कि उल्टा अधिवक्ताओं पर ही सुल्तानपुर पुलिस ने मुकदमा पंजीकृत कर दिया था। 

अधिवताओं का कहना है कि सुल्तानपुर पुलिस अधीक्षक पवन कुमार ने खुद अपनी जुबानी कहा था.....  कि मुझको तो एक हप्ते पहले ही पता चल गया था कि अधिवक्ता विजय प्रताप सिंह के साथ ऐसी घटना हो सकती है। जिससे उग्र हुए अधिवक्ताओ ने इस हत्या में जिले के पुलिस अधीक्षक पवन कुमार पर हत्या में संलिप्त होने का आरोप मढ़ दिया था।

उग्र हुए अधिवक्ताओं ने आज जिला कलेक्ट्रेट परिसर में महापंचायत का आयोजन किया जिसमे जिले से लेकर उत्तर प्रदेश बार काउंसलिंग के पदाधिकारियो सहित लगभग सत्रह सौ अधिवक्ताओं ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हुए जिला प्रशासन को जमकर धिक्कारा और प्रदेश सरकार से जिले के एस.डी.एम सदर, पुलिस अधीक्षक,सी.ओ.सिटी को निलंबित कर अधिवक्ता विजय  के परिवारीजनों को पैंतालिश लाख रुपये की आर्थिक मदद कर, अधिवक्ता हत्या कांड की सी.बी. आई.जाँच कराकर दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने की मांग की है । 
दीपांकुश श्रीवास्तव (दीपू ) की रिपोर्ट

Saturday, August 27, 2016

डिप्टी कमिश्नर के खिलाफ खोला मोर्चा

जनपद सुल्तानपुर के वाणिज्य कर के भ्रष्ट डिप्टी कमिश्नर के खिलाफ कारवाई न होने से गुस्साए अधिवक्ताओं ने मोर्चा बंदी कर प्रदर्शन जारी है। आरोप है कि डिप्टी कमिश्नर खण्ड तीन के पद पर तैनात संजीव कुमार सिंह की कार्यप्रणाली दूषित है। बताते चलें कि डिप्टी कमिश्नर द्वारा अधिवक्ताओं एवं व्यापारियों के अधिकारों के दुरूपयोग और उत्पीड़न की पूर्व में समाजवादी पार्टी के वर्तमान विधायक अनूप संडा के माध्यम से शिकायत कमिश्नर वाणिज्यकर मुकेश मेश्राम से की गई थी। मेश्राम के निर्देश पर एडिश्नल कमिश्नर वाणिज्य कर फ़ैजाबाद अखिलेश शुक्ल ने 18 जुलाई 2016 को सुल्तानपुर में अधिवक्ताओं व् व्यापारियों और विधायक से भेंट करके लिखित और मौखिक साक्ष्य प्राप्त किये थे। वही समस्त शिकायतें सही पाई गई थी और दो दिनों के भीतर कमिश्नर मेश्राम को रिपोर्ट प्रेषित कर दी थी। हैरत की बात तो ये है कि दोषी पाये जाने के बाद भी सम्बंधित अधिकारी के विरुद्ध कोई भी कार्यवाही नहीं की गई। सरकार के इस रवैये से नाराज़ अधिवक्ताओं ने एक बार फिर दोषी अधिकारी के खिलाफ मोर्चा खोला रखा है।